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रमजान क्या होता है? जानिए माहे रमजान की अहमियत ओर फ़ज़ीलत

रमजान क्या होता है, रमजान के बारे में कुछ अहम मालूमात

इस्लाम की 5 फ़राईज में से एक फर्ज है रोजा रखना! रोजा का माना है अपने आपको रोककर रखना थामकर रखना! रोजा एक वाहिद इबादत है जिसे अल्लाह ताला ने अपनी तरफ निसबत करते हुए फरमाया रोजा मेरे लिए है ओर में ही इसकी जजा देने वाला हूँ।

  • रमजान इस्लामी महीनों में नोवां महीना होता है !
  • चाँद को  देखकर सुरू होता है जिसमे 30 रोजा रखा जाता है !

रमजान की फजिलत। Ramjan Ki Fajilat

कुरआन ओर अहादिस से पता चलता है की रमजान की बोहोत सी फाजिलत है! यहाँ तक की लोगों को रमजान की हकीकत मालूम हो जाए तो तमन्ना करे की सारा साल रमजान ही रहे!

कुछ फाजिलट यहाँ बयान की गई है।

  1. आसमान की दरवाजे खोल दिए जाते है ओर दोजख की दरवाजे बंद कर दिए जाते है ! सयतान को कैद कर लिया जाता है !
  2.   इसमे एक एसी रात है जो हजार महीनों से बेहतर है जो उस रात से महरूम रहा बेशक महरूम है !
  3. जन्नत के आठ दरवाजे है जिसमे से एक दरवजा [ रैययान ] है जो सिर्फ रोज़े दारो के लिए है जिसमे सिर्फ रोजेदार दाखिल होंगे !
  4. हर चिज के लिए जकात है ओर बदन का जकात रोजा है ओर रोजा आधा सब्र है !

 

रमजान चाँद मुबारक। Ramzan Chand Mubarak


मुसलमान होने के नाते हमारी यह जिम्मेदारी है की हम रमजान चाँद मुबारक  देखकर रोजा रखे क्योंकि यह चाँद उस फर्ज की अदाईगी का पैगाम देता है जिसके लिए अल्लाह ताला ने फरमाया रोजा मेरे लिए है में ही उसकी जजा दूंगा ! हालाकी हर इबादत अल्लाह ताला के लिए ही है ओर वोही उसका अज्र देने वाला है ! रोज़े की अदाइगी से पहले चाँद देखने का हुकूम फरमाया गया है ! खास तोर पर रोज़े के लिए ये फरमान उसकी अहमीयत जाहीर करता है ! लिहाज हमे भी इसकी अहमियत को समझते हुए ईसकी सुरुआत चाँद देखने से करनी चाहिए।

चाँद देखने की दुआ। Chand Dekhne Ki Dua

रमजान की चाँद देखने की दुआ

اَللّٰہُ اَکْبَرُ، اَللّٰہُمَّ اَھِلَّہ عَلَیْنَابِالْیُمْنِ وَالْاِیْمَانِ وَالسَّلَامَةِ وَالْاِسْلَامِ ،رَبِّیْ وَرَبُّکَ اللّٰہُ

हिन्दी : अल्लाहुम्मा अहिल लहू आलैना बिल आमनि वल इमानि वस सलमति वल इसलमि वत तौफीकि लिमा तुहिबबू व तरज़ा रब्बी व रब्बुकल लाह। 

 तर्जुमा : ए अल्लाह ! इस चाँद को हमारे ऊपर बरकत ओर ईमान और सलामती और इस्लाम के साथ और इन आमाल की तौफ़िक के साथ निकला हुआ रख जो तुझे पसंद है। मेरा और तेरा रब अल्लाह है।

रोज़े की अहमियत। Roze ki Ahmiyat

रमजान की बरकतों से महरूम रहने वाला बेनसीब है !

हज़रत अनस बिन मालिक रजी अल्लाहु अनहू  से रिवाएत है: की रमजान आया तो रसूल अल्लाह सल्लेहलाहु ने फरमाया ए महिना जो तुम पर आया है इसमे एक रात एसी है जो कदरों  मंजिलत के एतबार से हजार महीनों से बेहतर है जो सक्स इसकी सहादत हासिल करने से महरूम रहा वो हर भलाई से महरूम रहा।

सेहरी  और इफ्तारी के मसाइल। Sehri Aur Iftari Ke Masala

सेहरी: सहरी खाने में बरकत है नीद से उठ जाने के बाद जानबूझकर सहरी तर्क नही करनी चाहिए। 

 हज़रत अनस रज़ीअल्लाहहु अनहू से रिवाएत है: रसूलअल्लाह सल्लेहलाहु वसल्लम ने फरमाया सहरी खाओ क्योंकि शहरी खाने में बरकत है। इसे बुखारी और मुस्लिम ने रिवाएत किया है।  

  • इफ्तार में जल्दी करना और सहरी में देर से खाना अंबिया कराम का तरीका है।

इफ्तारी : मगरीब की अज़ान सुनते ही तुरंत इफ्तारी करनी चाहिए।

हजरत उमर रदीअल्लाहू अनु कहते हैं: रसूल अल्लाह सल्लेल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फरमाया जब रात आ जाए दिन चला जाए और सूरज ग्रुब हो जाए तो रोजादार रोजा खोल ले। इसे बुखारी और मुस्लिम ने रिवायत  किया है।

इफ्तारी के बाद की दुआ। Iftaari Ke Baad Ki Dua

इफ्तारी के बाद की दुआ हिन्दी ओर तर्जुमा के साथ

 ذَھَبَ الظَّمَأُوَابْتَلَّتِ الْعُرُوْقُ وَثَبَتَ الْاَجْرُ اِنْ شَآئَ اللّٰہُ

हिन्दी: जहबाज़ जमाऊ वबतल्लाती उरुकु वासबतल अजरू इन शा अल्लाह  

तर्जुमा : प्यास बुझ गई रगे तर हो गई और अगर अल्लाह ने चाहा तो रोज़े का अजर हमारे अमल में लिख दिया गया।

रमजान में करने वाले कुछ अमल। Ramzan Mein Karne Wale Kuch Amal

  • कसरत से कुरान की तिलावत करनी चाहिए 
  • नफल नमाज़ पढ़नी चाहिए क्योंकि रमजान में नफल  नमाज की अजर  दुगनी हो जाती है
  • तरावी नमाज़ पढ़नी चाहिए!
  • तहज्जुद की नमाज़  पढ़ना चाहिए!
  • सदका और जकात देनी चाहिए!

नमजे तरावी की मसाइल। Namaze Taraweeh Ki Masaail

नमाज ए तराबी गुजदिस्ता शगीरा गुनाहों की मगफिरत का जरिया है 

हजरत अबू हुरैरा रदी अल्लाहु अनहू  से रिवायत है: कि रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया जिसने ईमान के साथ और शवब की नीयत से रमजान में कयाम किया उसकी गुजदिस्ता सारे गुनाहों को माफ कर दिए जाएंगे।इसे बुखारी ने रिवाएत किया है।

नमजे तरावी की मसनून रकाते आठ है लेकिन गैर मसनून रकाते की कोई हद नहीं ! जो जितनी चाहे पड़े।

  • नमाजे तरावीह का वक्त ईसा के बाद  से लेकर तुलुए फ़जर तक है।
  • नमाजे तरावी दो-दो रकात पढ़ना अफजल है।
  • बीतिर की एक रकात अलग पढ़नी भी मसनुन है। 

वो उमूर जिनसे रोजा न ही टूटता है ओर न ही मकरू होता है।

    • भूल चूक से कुछ खा लेना ना रोजे  को तोड़ता है ना मकरू करता है।
  • मिसवाक करने से रोजा नही टूटता
  • रोज़े के हालत में अगर अहतेलामं हो जाए तो उससे रोजा न टूटता है न ही मकरू होता है।
  • रोज किसी चीज के जिसम में दाखिल होने से टूटता है जिसम से खारिज होने से नही टूटता।
  • सर में तेल लगाने, कंघी करने या आँखों में सुरमा लगाने से रोजा मकरू नही होता।
  • हँडिया का जाईक चखना,मक्खी के हलक में चले जाने से रोजा मकरु नही होता।
  • थूक निगलने से रोजा नही टूटता। 

वो उमूर जो रोजे की हालत में नाजायज है।

  • गिबत करना गाली देना झूठ बोलना लड़ाई झगड़ा करना नाजायज है।
  • बेहयाई ओर जिहालत गुफ्तगू से परहेज करना चाहिए।
  • रोज़े के हालत में बीवी ओर खामिन्द का हमबिस्तरी करना जाएज नही।
  • कुल्ली  करते वक्त नाक में इस तरह पानी पहुंचाना जो हलक तक पहुंच जाए वह नाजायज है।

लैलतुल कद्र की फजीलत और उसके मसाइल। Lailatul Qadr Ki Fazilat Aur Uske Masaail

लैलतुल  कद्र के सहादत से महरूम रहने वाला बहुत बदनसीब है। 

हजरत आयशा रज़ी अल्लाह हू अनु से रिवायत है की : रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ने फरमाया रमजान के आखिरी आश्र की तौक रातों में  लैलतुल कद्र की तलाश करो! इसे बुखारी ने रिवाएत किया है।

हजरत आयशा रज़ी अल्लाह हू अन्हा फरमाती है : जब रमजान के आखिरी 10 दिन शुरू होते तो रसूल अल्लाह सल्लल्लाहु वसल्लम इबादत के लिए कमर वास्ता हो जाते। यानि कसरत से इन दिनों में इबादत करते। इसे बुखारी ओर मुस्लिम ने रिवाएत किया है।

लैलतुल कद्र की दुआ। Lailatul Qadr Ki Dua

लैलतुल कद्र की दुआ

اَللَّهُمَّ إِنَّكَ عَفْوٌ تٌحِبٌّ العَفْوَ فَأَعْفَوْ عَنِّي

हिन्दी: अल्लाहहुम्मा ईन्नका आफुवून तुहीब्बुल अफ़वा फाअफू अन्नी।

तरजुमा: ये अल्लाह तू माफ करने वाला है माफ करने को पसंद करता है लिहाजा तू मुझे माफ कर दे।

सदकाह ए फित्र। Sadqah-e-Fitr

सदकाह ए फित्र फर्ज है! सदकाह ए फित्र का मकसद रोजे  की हालत में होने वाले गुनाहों से खुदको पाक करना है। क्योंकि सदका गुनाहों को साफ करता है

  • सदकाह ए फित्र नमाजे ईद से कब्ल अदा करना चाहिए वरना आम सदका शुमार होगा।
  • सदकाह ए फित्र की मुस्ताइक वही लोग है जो जकात के मुस्ताइक है।
  • सदकाह ए फित्र की मेकदार एकशाह है जो पोने तीन से या ढाई किलो के बराबर है।
  • सदकाह ए फित्र  राशन के तौर पर देना अफजल है ! बनीस्वत पैसे देना ।
  • सदकाह ए फित्र देने का वक्त आखिरी रोज़े के इफ्तार करने के बाद शुरू होता है।लेकिन ईद से  एक-दो दिन पहले भी अदा कर सकते हैं।

नमाजे ईद की मसाइल। Namaze Eid Ki Masaail

ईद के रोज गुसल करना खुशबू लगाना और मिसवाक करना मुस्ताहक है। ईद के रोज अच्छे कपड़े पहनना मुस्ताहक है।

  • ईद उल फित्र की नमाज के लिए जाने से पहले कोई मीठी चीज खाना सुन्नत है।

हज़रत अनस बिन मलिक रज़ी अल्लाहु ताला अनहू फरमाते हैं की रसूल अल्लाह सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम ईद उल फित्र के दिन खजूरे खाए बगैर ईदगाह की तरफ नही जाते थे। और रसूल अल्लाह  सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम खजूर ताक खाते थे ताक का मतलब एक या तीन या पांच।

रमजान के बारे में कुछ अहम सवालात। Ramjan Ke Baare Mein Kuch Ahem Sawaalat

1. रोजा रखने से कौन सी बीमारी दूर होती है ?

डायबिटीज जैसी बीमारी नहीं होती। कैंसर जैसी बीमारियों से निजात मिलता है। इंसान के अंदर कोलेस्ट्रॉल कम हो जाती है। 

2. क्या खुशबू सूंघने से रोजा टूट जाता है ?

खुशबू सूंघने से रोजा नहीं टूटता।

3. रमज़ान में हमबिस्तरी करने से क्या होता है ?

रोजी की हालत में अगर बीवी और खामिद हमबिस्तरी करते हैं तो रोजा टूट जाता है। ए गुनाह है और रोजा कजा होगा ! इसका कफारा मुसलसल 60 रोजा रखना होता है। अगर बिचमे एक भी रोजा छूट जाए  तो दुबारा सुरू से रखना होगा।

4. रोजा किन पर फर्ज है 

 जो लड़की हेज़ से हो चुकी हो उस  पर रोजा फर्ज है ! और जिन लड़कों को ऍहतलाम हो जाए उन पर रोजा  फर्ज हो जाता है।

5. क्या हम बिना शहरी के रोजा रख सकते हैं?

अगर आपके पास वक्त ना हो शहरी करने का तो बिना शहरी के भी रोजा रख सकते हैं। अगर चे के आपके पास वक्त हो तो शहरी करना अफजल है।

6. रमज़ान में ज्यादा से ज्यादा क्या पढ़ना चाहिए?

रमजान में ज्यादा से ज्यादा कुरान की तिलावत करनी चाहिए। दरूशरीफ पढ़ना चाहिए अल्लाह का जिक्र करना चाहिए।

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